karm fal Sidhant and Parbhav ka Samna kaise karen :
मानव जीवन में सफलता और सुख चाहने वाला हर कोई यह जानता है कि कर्मों का महत्वपूर्ण स्थान है। जिस प्रकार के कर्म हम करते हैं, उसका हमारे जीवन पर सीधा प्रभाव पड़ता है।
कर्म फल सिद्धांत और प्रभाव का सही सामंजस्य बनाए रखना हमारे जीवन को सुखी व समृद्ध बनाता है। इस लेख में, हम जानेंगे कि -----------
- कर्म फल सिद्धांत और प्रभाव को कैसे समझें और कर्म फल का सामना कैसे करें।
- karm और (karm ke fal ) कर्म के फल के बीच क्या सामंजस्य है ?
- (karm ke fal ) कर्म के फल हमारे जीवन पर किस प्रकार प्रभाव डालता है?
- हमारे प्रशनों के उत्तर हमें क्यों नहीं मिलते है ?
- हम सभी अच्छे कर्म बाद भी दुखी एवं निराश क्यों हैं ?
- हमारी प्रार्थना का असर क्यों नहीं होता है ?
- मेरे ही साथ ऐसा क्यों होता है ? कई बार हमारे मन में इस प्रकार के Vichar चलते रहते हैं कि ,भगवान् ने मेरे साथ ऐसा क्यों किया ?
- जबकि मैं तो अच्छा हूँ। मैं तो अच्छा काम कर रहा हूँ। मैं अपनी सभी जिम्मेदारियां भली भांति निभा रहा हूँ। भगवान से डरता हूँ , नैतिक नियमों का पालन करता हूँ। मैं ईमानदार हूँ , कर्तव्य निष्ठ हूँ। फिर भी मेरे साथ ही गलत क्यों होता हैं ?
इसे लेकर मैं (karm ke fal) कर्म के फल से सम्बंधित सवालों के जवाब तलाशने का प्रयास कर रहा हूँ। इस आर्टिकल में मैंने ३ प्रकार से karm ke fal को, समझने का method प्रस्तुत किया है।
जब हमें प्रार्थना का उत्तर का उत्तर नहीं मिलता हैं , तो हम दुखी हो जाते हैं। कभी भगवन को दोष देते हैं ,तो कभी दूसरों को दोष देते हैं।
क्या हमारे ही Past के(Karm ke fal )कर्म , फल के रूप हमारे में सामने आते है ? क्या हमारे द्वारा किये गए karm हमें Reward करते है ?
ऐसे Vichar हमारे दिमाग में चलते रहते हैं। इन Vichar के कारण हमारे Vichar और Karm सामंजस्य में नहीं होते हैं। ऐसे में हम क्या करें , कि हमारे Karm and vichar सामंजस्य में आ जाएँ। आइए सबसे पहले यह जान लें कि कर्म क्या है?
Karm ko Nirdharit katrne wale factor.(कर्म को निर्धारित करने वाले कारक)
कर्म तीन प्रकार से होता है।
- मन से,
- वचन से,
- शरीर से ,
- हम अपने भूतकाल की कठपुतली बन जाते हैं। कर्म हम किस प्रकार करते हैं ? उसी के अनुसार हमें अपना भाग्य लिखते जाते हैं। एक बार जब किसी खास तरह का कर्म करने की प्रवृति बना लेते हैं, तो हम उसी के अनुसार karm करने लगते हैं।
- यह छाप हमारी मन के संग्रह वाले भाग में में कुछ खास तरह की संरचना बनाती है और हम इस के गुलाम होते जाते हैं।
- मन के स्तर पर मन इसको विचार के रूप में बार बार हमारे सामने लता रहता है। । बार-बार मन की स्मृति में कर्म की छाप की सूचना ही विचार है।
(a): By mind (मन से)
- जो भी विचार मन में Generate होता है।
- चाहे अच्छा विचार हो या बुरा विचार , दोनों का Result हमें मिलता है।
- मन का संबंध सीधे शरीर से है ।
मन से किसी भी प्रकार का थॉट जनरेट होता है, तो यह मात्र 1 मिनट तक ही दिमाग में रहता है। लेकिन विचारों पर हमारी प्रतिक्रिया ही इन विचारों को हमारे मन में जमने एवं छाप छोड़ने को मजबूर करती है। हमारी प्रतिक्रिया, हमेशा बाहर से संचित की गई सूचना के आधार पर होती है।
- इसलिए यह प्रतिक्रिया बहुत दुख का कारण बनती है, क्योंकि यदि हमने अपने inner life software पर विश्वास किया होता ,तो हमारे दिमाग में जो भी विचार उत्पन होता , वह सही होता है, या हम इस विचार को stop कर सकते थे।
जैसे ही हमारे मन में कोई थॉट implant होता है ,तो चेतन मन एवं विचार को तर्क संगत मानकर , अवचेतन मन के send कर देता है, और अचेतन मन इस vichar को मन में imprint कर देता है।
यह विचार cells के अंदर karm के रूप में परिवर्तित होने के लिए मजबूर हो जाता है और पूरे शरीर की कार्यप्रणाली में इसका परिणाम है।
इस vichar parkriya का हमारा शरीर में implant होने का तब पता चलता है, जब शरीर में इस vicahr के कारण(karm ke fal )कर्म के फल के रूप में कई रोग उभरते हैं।
हम कोई भी काम कितने भी अच्छे तरीके से करें। हम चाहे कितनी भी ईमानदार क्यों ना हो? हम चाहे कितने कर्तव्य निष्ठ क्यों ना हो ? लेकिन हमारे मन में चल रहे थॉट कुछ-कुछ इस प्रकार से हो, तो कर्म का फल उल्टा हो जाता है।
- मैं ही ईमानदार व्यक्ति हूं,बाकी तो सारे चोर है।
- मैं ही कर्तव्यनिष्ठ हूं, बाकी तो मुफ्तखोर है। कामचोर हैं।
- मैं ही अच्छा हूं, बाकी सब तो बुरे हैं, गंदे हैं।
- मैं ही नैतिक व्यक्ति हूं, बाकी तो अनैतिक काम में लगे हैं।
- मैंने उसके लिए इतना अच्छा किया था, उसने मेरे साथ अच्छा बर्ताव नहीं किया। वह कितना धूर्त व्यक्ति हैं।
- मैं तो भगवान की पूजा करता हूं, बाकी तो सारे नास्तिक है।
- मैं तो शुद्ध शाकाहारी व्यक्ति हूं, जबकि वह तो शराबी है, गाली देता है। आदि।
इस प्रकार के प्रश्नों के उत्तर में भगवत गीता कहती है, कि हमारे द्वारा दूसरे के लिए , जिस प्रकार के vicahr मन में उत्पन्न किये जाते हैं। वह विचार भी हमारे के परिणाम के रूप में हमें प्राप्त होता हैं।
- जब भी हम कोई काम करते हैं तो, हमारे अंदर या भाव होता है कि मैं अच्छा कार्य कर रहा हूं। यह भाव ठीक है , लेकिन आप जब सोचते हैं, कि मैं ही अच्छा कर रहा हूं, बाकी सब तो बुरे हैं , कामचोर हैं , या मैं ही ईमानदार हूं।
- बाकी सब बेईमान है, तो आपके (karm ke fal )कर्म के फल के खाते में बुरे ,कामचोर,बेईमान जैसे थॉट के फल भी जुड़ जाते हैं। भविष्य में आपको इसका फल १००% मिलता तय है।
आपको किसी की बुराई करने में आनंद आता है, तो आप उसकी बुराई के vichar को अपने मन में एक तरह से implant कर देते हैं और यह vichar अवचेतन मन में इंप्रिंट हो जाता है।
यह vichar ,karm में अवश्य बदलेगा। क्योंकि vichar एक प्रकार की ऊर्जा है , जो एक रूप से दूसरे रूप में अवश्य बदलती है।
- भविष्य में अवश्य इस (karm ke fal )कर्म के फल हमें देखने को मिलते हैं। जब आप किसी के लिए गलत सोचते हैं ,तो सबसे पहले आपका ही ऊर्जा डिप्लीट होती है।
- आपका ही बुरा होता है। इसलिए विचारों के चयन में ध्यान देना अति आवश्यक है। क्योंकि थॉट एक प्रकार की ऊर्जा है और इसे एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तित होना है।
इसलिए हमारी प्रार्थना है या (karm ke fal ) कर्म के फल 100% हमें नहीं मिलता है। negative vichar के कारण हमारे द्वारा संचित कर्मो का फल आधा ही मिलता है।
(b) By promise(वचन से) (karm ke fal ) कर्म के फल kyon milta hai?
भाषा अपने विचारों को दूसरों तक पहुंचाने का सशक्त माध्यम है। भाषा वाणी के रूप में दूसरों तक पहुँचती है। भाषा के रूप में तो शब्द लिखे गए हैं वह तो एक तरह से नॉन लिविंग थिंग्स है।
लेकिन उन शब्दों का अर्थ हमारे दिमाग में भावना के रूप में उभरता है। दिमाग इस भावना को एक्शन में बदल देता है।
- आप बहुत सुंदर हैं, सुशील हैं आपका काम करने का तरीका सर्वोत्तम है।
- आप बहुत बुरे इंसान हैं, आपको कुछ काम करना नहीं आता है। आप धरती पर बोझ है।
यह दो प्रकार के वक्तव्य एक ही व्यक्ति को अलग-अलग समय पर कहे गए हैं। लेकिन दोनों वाक्यों के अर्थ के मायने अलग अलग होंगें।
दिमाग दोनों प्रकार के विचारों को स्वीकार करता है। एक में Positive Vibration Generate होती हैं। दूसरे में Negative thought के कारण दिल पर चोट के लगती है और Negative Vibration generate होती है।
एक Vichar जीवन बना सकता है। दूसरा vichar जीवन तबाह कर सकते हैं। भाषा के रूप में शब्दों ने कुछ नहीं किया, बल्कि हमारे दिमाग में भरी सूचनाओं ने शब्दों पर प्रतिक्रिया कर विचार को karm में परिवर्तित होने के लिए ,मजबूर किया है। (karm ke fal ) कर्म के फल उसी हिसाब से तय हुआ है।
उदाहरण।
हमारे द्वारा कहे गए शब्द किसी की जिंदगी तबाह भी कर सकते हैं और बना भी सकते हैं।
- एक टीचर के रूप में मेरे द्वारा, किसी बच्चे के लिए कहे शब्दों से , उस बच्चे की जिंदगी संवर भी हो सकती है और तबाह भी हो सकती है।
- जैसे तुम जिंदगी में कुछ नहीं कर सकते हो और दूसरा शब्द है तुम जीवन में सर्वश्रेष्ठ कार्य करोगे। तुम्हारा भविष्य महान और श्रेष्ठ है।
- एक टीचर के रूप में मेरे द्वारा कहे गए वचन जो कि एक कर्म है, किसी की जिंदगी बना भी सकते हैं और बरबाद भी कर सकते हैं।
अब प्रश्न यह है कि हम क्या सही शब्दों का इस्तेमाल करते हैं? विशेषकर जब बात अपने बच्चों की आती है?
(c) By body (शरीर से): Karm,Vicharon se achhe kyon hai? कर्म,विचारों से अच्छे क्यों है ?
हमारे हाथ पांव जो भी कर्म करते है ,उसका फल हमारे शरीर को प्राप्त होता है।
उदाहरण के तौर पर यदि आप हाथ से लिखने का कार्य करते हैं, तो कर्म तो हाथ की उंगलियां द्वारा हुआ लेकिन फल हमारे दिमाग को मिलता है। अर्थात लिखना एक तरह से साइको न्यूरल मांसपेशियां गतिविधि है।
- जो चेतन और अवचेतन मस्तिष्क के बीच सेतु बनाने में और उन्हें एकाग्रचित करने में मदद करती है।
दूसरी तरफ हमारे नकारात्मक विचार के कारण हाथ ने किसी को चोट पहुंचाई हो तो (karm ke fal ) कर्म के फल के रूप में हमारे पूरे शरीर एवं मन को इसका फल भुगतना पड़ता है। शरीर की case में हमारे karm or vichar सामंजस्य में होते हैं।
हमारा शरीर बाहरी तौर पर शांत दिख सकता है। लेकिन आंतरिक तौर पर हमारे अंदर बहुत सारे functions इस समय भी काम कर रहे है। इन functions को संचालित करने वाला हमारा inner life software है।
हमें अपने inner software के बारे में कभी भी नहीं पढ़ाया गया है। इसलिए हम अपनी आंतरिक शक्ति से अनजान रहते है, की हमारे अपने ही Vichar भविष्य में (karm ke fal ) कर्म के फल के रूप में हमें ही प्राप्त होंगे।
Karm Fal Sidhant ka Arth : कर्म फल सिद्धांत का अर्थ:
कर्म फल सिद्धांत भारतीय दार्शनिक और धार्मिक परंपरा में एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है। भगवत गीता में श्री कृष्ण , अर्जुन को उपदेश देते हुए सामन्य अर्थों में कर्म सिद्धांत का अर्थ इस प्रकार से बता रहें हैं। ईशवर प्रत्येक व्यक्ति के हृदय में वास करते हैं। परन्तु ईश्वर किसी के विचार या मन को नहीं बदलते हैं। वह सदा निष्क्रिय हैं , मौन हैं, साक्षी भाव में अकर्ता के रूप में हृदय में विराजमान है।
1:कर्म सिद्धांत का पहला नियम है कि भगवान कर्म सिद्धांत को नहीं बदल सकते हैं अर्थात व्यक्ति को स्वंत्रता दी गयी है कि वह अपने हिसाब / विचार से कर्म कर सके तथा उसी के अनुरूप कर्म फल प्राप्त करे।
- इसका मूल अर्थ है कि हमारे कर्मों का फल हमें अवश्य मिलता है। यह सिद्धांत व्यक्ति को उसके कर्मों के लिए जिम्मेदार बनाता है ।
- इस सिद्धांत के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को यह स्वतन्त्रता दी गयी है कि वह अपने कर्मो के अनुसार अपने भाग्य की निर्माण स्वयं कर सके।
2:कर्म सिद्धांत का दूसरा नियम है कि व्यक्ति को यह भी अधिकार दिया गया है कि वह कर्म के द्वारा ही अपने कर्मों के फल में सुधार कर सके। कर्तव्य कर्म करके अज्ञान दूर करे। वह स्वयं करता है ईश्वर तो मौन हैं अकर्ता हैं।
- कर्म को सुधारा जा सकता हैं।
3: कर्म सिद्धांत का तीसरा नियम है कि मन, कर्म का कारण है। शरीर कर्म का कारण नहीं हैं। पहले विचार पनपते हैं उन्ही विचारों के अनुसार कर्म होते हैं.
- अर्थात किसी के भाग्य का निर्धारण मन के बजाय एक विचार में निहित है।
4: कर्म सिद्धांत का चौथा नियम है कि कर्म के प्रति जिस प्रकार की भावना होगी उसी के अनुसार कर्म फल की प्राप्ति होगी
- अर्थात पाप-पुण्य का फल केवल कर्ता की भावना में ही निहित होता है न कि कर्म में।
5 : कर्म सिद्धांत का पांचवा नियम है कि कर्म योग में आसक्ति का त्याग करके अपने कर्तव्य का पालन करना ही ब्रह्म ज्ञान हैं।
- अर्थात अपने को अकर्ता मानकर किया जाने वाला कर्म ही निष्काम कर्म है। यही मोक्ष का मार्ग है। व्यक्ति चाहे संसारी हो या योगी दोनों प्रकार के व्यक्तियों की अंतिम सत्ता प्राप्त करें का आधार निष्काम कर्म योग में ही है।
6: कर्म सिद्धांत का छठा नियम है : कर्त्तव्य परायणता - कर्तव्य जब निष्काम से अथवा पूर्ण श्रद्धा से इस कर्म फल को ईश्वर को अर्पित करके करें तो व्यक्ति अहंकार मुक्त होकर ब्रह्मयुक्त हो जाता हैं।
- निष्काम कर्म=कर्त्तव्य परायणता
7 : कर्म सिद्धांत का सातवां नियम है - आत्मा अकर्ता हैं। आत्मा को कर्म की जरुरत नहीं होती है। जब तक मनुष्य अपने को कर्ता मानकर कर्म करेगा तब तक वह वासना , कामना के रूप में अपने अहंकार का पोषण करता रहेगा और अपने मानसिक रोगों से घिरा रहेगा।
- कर्म कर्ता=अहंकार
- आत्मा अकर्ता=शांति
karm ka fal or Parbhav : कर्म का फल और उसका प्रभाव का सामना कैसे करें"
यहां पर कर्म के फल को तीन तरीके से
साधारण शब्दों में समझने की कोशिश की है।
- विज्ञान के अनुसार ।
- प्रकृति के अनुसार।
- भगवत गीता के अनुसार।
1: By Science: विज्ञान के अनुसार।
According to Newton's Third Law of Motion
"For every action, there is an equal and opposite reaction.
Example .
किसी गेंद को जोर से दीवार पर पटकने से ,गेंद तेजी से वापस आएगी। धीरे से दीवार पर पटकने,गेंद धीरे से वापस आएगी। अर्थात जितनी क्रिया हुई उसी अनुपात में प्रतिक्रिया हुई।
- इसी प्रकार से जो भी karm हमारे द्वारा किए जाते हैं चाहे वह सकारात्मक व नकारात्मक vichar हो उसी अनुपात में हमारे सामने Result के रूप में प्राप्त होते हैं।
यदि हमने किसी के लिए अच्छे vichar generate किये ,तो सबसे पहले हमारा ही भला होने वाला है। क्योंकि vichar एक प्रकार की ऊर्जा है और यह karm में जरूर बदलेगी। इसलिए दूसरों के लिए भी अच्छा सोचें।
2.By Nature :प्रकृति के अनुसार/आध्यात्मिक प्रक्रिया।
किसी खेत में गेहूं का बीज बोने से गेहूं की फसल मिलेगी। धान का बीज बोने से धान की फसल प्राप्त होगी। गुलाब की कलम लगाने से गुलाब के फूल मिलेंगे।
Example:
हम गेहूं का बीज बोकर, हमारे लाख चाहने पर भी धान की फसल नहीं काट सकते हैं। भगवान से प्रार्थना करने पर भी गेहूं को धान की फसल में नहीं बदले जा सकते हैं।
- हमारी प्रार्थना का असर इसलिए नहीं होता है , क्योंकि हम १००% शिदत्त से प्रार्थना नहीं करते हैं। हमें अपने पर ही पूरा विश्वास नहीं होता है।
- जबकि सत्य तो यह है,की वचन भी एक प्रकार की ऊर्जा ही है , और यही ऊर्जा इस अस्तित्व में फैलने पर रिजल्ट के रूप में १००% वापिस मिलेगी .
अर्थात प्रकृति का नियम है कि जैसी करनी वैसी भरनी जैसा बोओगे, वैसा काटोगे।
इन तथ्यों से साबित हो जाता है कि हमारे कृत karm हमारे सामने परिणाम के रूप में एक दिन अवश्य आएंगे।
हमारी प्रार्थना कैसी भी हो लेकिन हमारी कृत्य कर्म से, हमें छुटकारा नहीं मिल सकता है । परिणाम तो हमारे सामने आकर रहेगा
एक बार जब आप अपने इनर सॉफ्टवेयर के संपर्क में होते हैं , तब हमें कुछ भी हासिल करने की कोशिश नहीं करनी होती है।
हमारी कोई इच्छा करने या सपने रखने की जरूरत नहीं होती , क्योंकि हमारे साथ जो सबसे अच्छी चीज हो सकती हो वह स्वत हो जाएगी।
- हमारा inner software कर्म से अछूता है।
- हां, इसमें कर्म का Record ,Memory के रूप में store जरूर होता है।
- यही हमारे कृत कर्म का फल भविष्य में देगा।
- आध्यात्मिक प्रक्रिया का अर्थ है, जीवन की ओर वापस लौटना अर्थात अपने शरीर और मन और विचार को सामंजस्य में स्थापित करना है। आध्यात्मिक प्रक्रिया Karm के छापों के संग्रह को स्वतंत्र नहीं करता है ,बल्कि हमको इसके प्रति अधिक सचेतन बनाने में सहायता करता है।
- यह हमारे Karm के बारे में एक संरचना है और बताता है कि ना Karm अच्छा होता है ना बुरा होता, कर्म होता है और इसकी छाप जरूर बनती है। यह हमारे ऊपर से Karm और विचारों की पकड़ को कमजोर करता है।
3:According to Bhagavat Geeta:भगवत गीता के अनुसार
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ।मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि ।।47।।
- कर्तव्य कर्म करना ही तुम्हारा अधिकार है।
- आपका कर्म के फल पर अधिकार नहीं है न ही फल की कामना रखनी है ।
- आपको कर्म के फल की इच्छा भी नहीं रखनी है।
- यदि फल की इच्छा से कार्य करोगे तो वह बंधन का कारण बनेगा। यही तनाव का मूल कारण है।
- निष्काम कर्म ही बंधन अर्थात स्ट्रेस से मुक्ति का मार्ग है।
- कर्म करने वाला मैं हूँ अर्थात सकाम कर्म ही दुखों का करण हैं।
- यदि हमरे प्रत्येक कार्य में निष्काम भाव है तो हमें शांति ,दृढ़ता सुख तथा यश की प्राप्ति होगी।
- कर्म करना आवश्यक है। यह भी नहीं कि तुम कर्म न करो। कर्म ही जीवन है तथा जीवन का आधार है।
- अकर्मण्यता स्वयं में पाप एवं बंधन का कारण है। यह संसार कर्म भूमि है और मनुष्य जीवन केवल कर्म करने के लिए ही है लेकिन निष्काम में ही हमरै सफलता , शांति का राज छुपा है, और यही उत्तम मार्ग है।
Your right is to work only, but never to the fruit thereof. Be not instrumental in making your action-bear fruit, nor let your attachment be to inaction-(47)
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