Kya Paristhitiyon ko swikar karke ham apna bhagya badal sakte hain:
- कैसे हम अपने (Bhagya ko Badal skate Hain) भाग्य को बदल सकते हैं?
- कैसे हम अपने (Bhagya ka Nirman ) भाग्य का निर्माण कर सकते हैं?
- यदि कर्म का फल सकारात्मक है, तो हम अपने को भाग्यशाली मानकर खुश होते हैं।
- यदि परिणाम हमारे हिसाब से प्राप्त न हो,तो हम सुरक्षा के मूड में आ जाते हैं या नकारात्मक प्रतिक्रिया करने के लिए तत्पर रहते हैं।
God ko blame kyon karte hai: क्या (apne bhagya) अपने भाग्य के लिए भगवान को दोषी ठहराना उचित है?
हम में से हर किसी के पास असाधारण कार्य करने की छमता मौजूद होती है। हम हमारे द्वारा सोचे गये लक्ष्य को हासिल करेगें या नहीं यह इस बात पर पूर्ण रूप से निर्भर नहीं करता है कि हम किन परिस्थितियों में है बल्कि इस बात पर निर्भर करता है कि हम उन परिस्थितियों में क्या निर्णय लेते हैं।
हम अपने कथनों में कभी जीवन के अर्थ को परिभाषित नहीं कर सकते हैं।
आज जिस भी परिस्थिति (Paristhiti) में हैं , जैसा भी जीवन जी रहे हैं । इन सभी के लिए ईश्वर जिम्मेदार नहीं है। ईश्वर को अपनी स्थिति के लिए दोष देना सही नहीं है ।
ईश्वर हम सबके अंदर न्यूट्रल भाव में मौजूद है। हम इसे माने या न माने इस बात से फर्क नहीं पड़ता है। फर्क इस बात से पड़ता है, कि हम क्या सोचते है? क्या करते हैं ? और अपने दिमाग से कैसे डील करते हैं?
हमें जीवन जीने के लिए मात्र एक परसेंट ही काम करना पड़ता है। वह भी केवल पेट की भूख को मिटाने के लिए भोजन का प्रबंध करना , बाकी काम तो हमारा inner software खुद ही करता रहता है।
- हम अपनी जिम्मेदारी स्वीकार नहीं करते हैं। इसलिए हम हमेशा अपनी परिस्थितियों या परेशानियों के लिए दूसरों को दोषी समझते हैं। यदि दूसरा कोई न मिले तो अपना सारा दोष ईश्वर पर मढ़ देते हैं।
यह सबसे आसान कार्य लगता है , कि हे भगवान यह तूने मेरे साथ क्या कर दिया। बस यही से सारी परेशानी शुरू हो जाती हैं ।
- हम अपने को सबसे सही एवं अच्छा व्यक्ति मानने लगते हैं और परिस्थितियों की जिम्मेदारी नहीं लेते हैं ।
- इस कारण सकारात्मक कुछ अच्छा कर्म भी नहीं करते हैं।
इसी कारण हमारा (Bhagya) भाग्य नहीं बदलता है और हमारी प्रार्थनाओं के उत्तर भी हमें नहीं मिलते है। यही कारण है, कि हम अपने भाग्य के निर्माण के लिए स्वयं को दोषी न मानकर भगवान को दोषी मानते हैं।
- हम सब एक ऐसी दुनिया में जी रहे हैं जहां किसी ने भी भगवान को नहीं देखा है। केवल अपनी सोच में भगवान की आकृति को बना कर चलते हैं।
आप ही बताएं कि , यदि बंदर कहे कि मेरा भगवान कैसा हो? तो क्या बन्दर जैसा ही नहीं होना चाहिए?
- हमारे सामने भगवान प्रकट हो जाए तो हंड्रेड परसेंट हम सभी, भगवान से भी भगवान होने का सबूत मांग सकते हैं। लेकिन दोष मढ़ने में हम सभी माहिर हैं।
सबसे आसान तरीका है, कि हे भगवान हे तूने मेरे साथ क्या कर दिया हमारे (bhagya ka nirman) भाग्य के निर्माण में ईश्वर का हाथ हो या ना हो लेकिन हमारा हाथ जरूर होता है ।
Human being Apne destiny kaNirmata hai : मनुष्य स्वयं अपने (bhagya ka nirmata) भाग्य का निर्माता है।
यदि हमें अपने (bhagya ko badalna ) भाग्य को बदलना है, तो हमें सबसे पहले अपने को खाली करना होगा। अर्थात अपने दिमाग में भरे सारे useless thoughts को खाली करना होगा।
आज तक हम अपने आपको हमेशा बाहर की सूचनाओं से भरते आए हैं और चाहे सूचनाएं सही हों या गलत, सभी प्रकार की सूचनाओं से हमने अपने दिमाग को कचरे का ढेर बना दिया है।
- इन्हीं सूचनाओं के आधार पर हम सभी अपने जीवन को चला रहे हैं। क्या यह सही है?
जहां तक मुझे लगता है,कि हमारे जीवन में आज 30% सकारात्मकता और 70% नकारात्मकता है। नकारात्मक विचारों ने हमारे दिमाग पर अपना कब्ज़ा जमा लिया है।
- जबकि असलियत में हमारी जिंदगी का सकारात्मक एवं नकारात्मक विचारों का अनुपात क्रमश: 80:20 होना चाहिए।
- 80 % और 20 % का सकारात्मक और नकारात्मक अनुपात सबसे बेस्ट होता है। इसी अनुपात के हिसाब से सभी कुशल व्यक्ति अपने जीवन को चलाते हैं।
20 % नकारात्मक होना भी जरूरी है। उदाहरण के लिए मैं आपसे कहूं , कि सर्दी का मौसम हो और आप बिना गर्म कपड़ों के बाहर जाएं तो आपके दिमाग में एक नकारात्मक विचार जरूर उत्पन्न हो जाता है, कि कहीं मैं बीमार ना हो जाऊं।
- सर्दी ना लग जाए, फिर बुखार ना आ जाए इस तरह के नकारात्मक विचार आने जरूरी भी है। तभी हम अपने शरीर को प्रोटेक्ट कर सकेंगे।
इसलिए हमारे अंदर 20 % नकारात्मकता होना भी जरूरी है। अन्य उदाहरण से आप खुद ही समझ सकते हैं जैसे गाड़ी तेज चलाने पर क्या होगा, एक्सीडेंट हो सकता है।
- एक्सीडेंट होना के नकारात्मक विचार के कारण हम गाड़ी को कंट्रोल में रखना जरूरी समझते हैं। यदि हम इस विचार को अपने दिमाग में रखते हैं , तो हम हमेशा अपने गंतव्य तक सुरक्षित पहुंच सकते हैं।
इस प्रकार के 20% विचार नकारात्मक होने से एक व्यक्ति अपना सामान्य जीवन बिता सकता है और 80% सकारात्मक होने का मतलब है कि हम अपने जीवन का उद्देश्य प्राप्त करें।
Right karn bhagya badal sakte hain: भाग्य को बदल सकते हैं।
जैसे एक बर्तन में दूध डालने से पहले बर्तन को साफ करना होगा ।यदि बर्तन के अंदर किसी भी प्रकार की गंदगी है , तो उस बर्तन में हम दूध नहीं डाल सकते हैं।
वह भी गंदा हो जाएगा इसलिए सबसे पहले अपने (bhagya ko badalne) भाग्य को बदलने से पहले अपने को खाली करना होगा।
अर्थात अपने भाग्य का निर्माण करना है ,तो सबसे पहले हमें अंदर के सारे नकारात्मक विचारों को एवं सारी नकारात्मक पूर्व धारणाओं खाली करना होगा। जो भी हमारे मिथक है , उन सभी को तिलांजलि देेेनी होगी।
जब हम अंदर से खाली हो जाएंगे तभी हम अपने अन्दर नया ज्ञान धारण कर अपनेे (bhagya ko badal sakte hain) भाग्य को बदल सकते हैं। अपने को खाली करने का अर्थ है ।
- अपनी ओरिजिनल स्टेट को पहचानना अर्थात मैं कौन हूं?
- मेरे जीवन का उद्देश्य क्या है?
- मैं इस जीवन में क्यों आया हूंॽ
- मेरे पास कितना समय है और मैं यहां पर क्या कर सकता हूं ?
- मैं एक ऊर्जा के रूप में inner life software हूं।
- मैं अंदर से एक ऊर्जा हूं?
- इस शरीर से हम सभी ने बहुत सारे कार्य किए हैं। लेकिन अनुभव के स्तर पर सभी का अनुभव व्यक्तिगत होता है ।
- इसलिए प्रत्येक व्यक्ति एक unique personality (यूनिक पर्सनैलिटी ) हूं और किसी खास काम के लिए इस दुनिया में आई है।
- हम हमेशा नहीं रहेंगे लेकिन यह प्रकृति हमेशा रहेगी।
Bhagya ko badalne ko do mool sidhant : अपने भाग्य को बदलने के दो मूलभूत सिद्धांत।
1: Paristhitiyon ko accept karen: परिस्थितियों को खुले मन से स्वीकार करें।
- हे भगवान यह तूने मेरे साथ क्या कर दिया है?
- मैं ही क्यों?
- आप अपने बच्चे का भाग्य सर्वश्रेष्ठ लिखेंगे
- सगे संबंधियों का भाग्य भी उत्तम लिखेंगे ।
- पड़ोसियों का भाग्य भी आप बहुत अच्छा लिखेंगे।
- दुश्मनों के बच्चों का भविष्य भी अच्छा लिखेंगे।
- समाज के सभी प्राणियों का भविष्य भी आप ठीक ही लिखेंगे ।
- जब एक इंसान होने पर हम सभी बच्चों का (bhagya) भाग्य सर्वश्रेष्ठ लिख रहे हैं , तो भगवान स्वयं कितना शक्तिमान है? उसने तो सभी का (bhagya) भाग्य सर्वोत्तम लिखा होगा ।
- प्रत्येक व्यक्ति (apne bhagya ka nirmata swaym hai) अपने भाग्य का निर्माता स्वयं है। भगवान का इसमें कोई रोल नहीं है । उसने हमें इस पृथ्वी में खुशहाल,स्वस्थ, प्रेममय जीवन बिताने के लिए अपने बच्चे के रूप में यहां भेजा है।
- हमारे पृथ्वी में आने से पहले ही भगवान ने हमारे जीवन की जरूरी चीजों की यहां व्यवस्था कर दी थी।
- हवा, पानी ,पृथ्वी ,जल ,आकाश जैसे पांच आधार भूत तत्वों को पहले ही यहां व्यस्थित कर के रखा हैं।
- बच्चे के पैदा होने से पहले ही मां के आंचल में भोजन की व्यवस्था कर देता है ।
2:Take your Responsibility of Karma : कर्म के फल की जिम्मेदारी स्वीकार करें।
- प्रकृति का तो मात्र इशारा है और जोर से पुकारा रही है , कि हे मानव अभी भी वक्त है सुधर जा । अपनी महत्वाकांक्षा के लिए प्रकृति को बर्बाद मत कर अपने कर्मों का फल तो तुझे ही भुगतना है।
- यह वाक्य अपने आंतरिक भाव से मन से सोचना और कहना है, कि मेरी विपरीत (Paristhitiyon) परिस्थितियों के लिए मैं ही जिम्मेदार हूं । यह भाव हमें (bhagya ko badalne ) भाग्य को बदलने की ओर ले जाता है।
मेरे साथ जो भी घटित हो रहा है, सबके लिए मैं ही जिम्मेदार हूं। जैसे ही हम अपने आप से यह कहते हैं , कि सभी चीजों के लिए मैं ही जिम्मेदार हूं, तो हमारा इन्नर सॉफ्टवेयर जिसे हम "मैं' भी कहते हैं , हमारे (bhagya ko badalne ) भाग्य के बदलने के लिए काम करना शुरू कर देता है।
- इस कारण समस्याओं को सुलझाने के लिए हमें बहुत सारे विकल्प मिल जाते हैं । हमारे इन्नर साफ्टवेयर द्वारा प्रस्तुत किए हल के कारण हमारा (Paristhitiyan) परिस्थितियां को देखने का नजरिया बदल जाता है।
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